गुलाबी सर्दियों की धुप बड़े ही एहतियात से अपने टुकड़े बिखेरती है , कभी छत की मुंडेर पर तो कभी खिड़की पर लगे गमलो को सवारती है , अभी भी उस धुप का एक टुकड़ा बिखरा हुआ है जिसे गुनगुना कर मैंने अपनी हथेली पर रखा है, एक अजीब सा सुकून दे गयी है वो धुप मेरी अंदरूनी चोटों को भी भर गयी है वो धुप, मुझे कितनी बारीकी से पहचानती है वो मेरे हर एक हिस्से को जानती है, न जाने क्यों इतना बेचैन हू्ँ मैं आज पर ये बेचैनी भी मुझे अच्छी लगने लगी है, जिस तरह उस धुप के होने से अलग ही सुकून मिलता है मुझे वो सुकून तेरी मौजूदगी दे जाती है आज, कहना सिर्फ इतना ही चाहता हु मैं के तू मेरी ज़िन्दगी का वो धुप है जिसके होने से तो ज़िंदादिल हु मैं वरना रूह भी मेरी बुझने में वक़्त नहीं लेती आज...
4.4
12
votes
Article Rating


Priya Jaiswal is an aspiring writer trying to channelize her thoughts into something beautifully captivated writings.
It is so beautiful ??
Hey
Accept my request on Instagram please.