उड़ने दे! मुझे इस प्रभात;
अब मत कर मेरे ,प्राण घात।
फिर मत कर कोई पक्षपात;
सब्र बांध तोरे ये जलप्रप्रात।
तय है! तय है! तय है!
कब्र खोद मत, ना कर निज आघात;
कर्म तेरे धरा ,पर कुठाराघात।
करते प्रकृति से विश्वासघात।
क्षय है! क्षय है! क्षय है!
हे मनुज! खुद को तू संभाल;
धरती ना कर दे, फिर बवाल।
तेरे पापो का मायाजाल;
ना कर दे, प्रकृति को क्रुद्ध विकराल;
अब के, बचेगा ना कहीं नर कंकाल।
तय है! तय है! तय है!
देख, प्रकृति अब रो रही;
मानवता फिर भी सो रही।
पेड़ बचे ना रहे जंगल जाल;
फैला चिमनी का धूल धाल।
पसरा कारखाने का मकड़जाल;
बचा ना सकता, अब तुझे कोई ढाल।
क्षय है! क्षय है! क्षय है!
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Nicee???