पंछी की चेतावनी

ना कर दे, प्रकृति को क्रुद्ध विकराल; अब के, बचेगा ना कहीं नर कंकाल। तय है! तय है! तय है!

उड़ने दे! मुझे इस प्रभात;

अब मत कर मेरे ,प्राण घात।

फिर मत कर कोई पक्षपात;

सब्र बांध तोरे ये जलप्रप्रात।

तय है! तय है! तय है!

कब्र खोद मत, ना कर निज आघात;

कर्म तेरे धरा ,पर कुठाराघात।

करते प्रकृति से विश्वासघात।

क्षय है! क्षय है! क्षय है!

हे मनुज! खुद को तू संभाल;

धरती ना कर दे, फिर बवाल।

तेरे पापो का मायाजाल;

ना कर दे, प्रकृति को क्रुद्ध विकराल;

अब के, बचेगा ना कहीं नर कंकाल।

तय है! तय है! तय है!

देख, प्रकृति अब रो रही;

मानवता फिर भी सो रही।

पेड़ बचे ना रहे जंगल जाल;

फैला चिमनी का धूल धाल।

पसरा कारखाने का मकड़जाल;

बचा ना सकता, अब तुझे कोई ढाल।

क्षय है! क्षय है! क्षय है!

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Vaisnawi Shaw
Vaisnawi Shaw
3 years ago

Nicee???

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Srinivas Moghekar

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