सुलग रहा है शहर ये सारा,
नफरत और रंजिश की चिंगारी से
लगी है उठने लपट आग की,
हर मोहल्ले और गलियारों से।
नहीं रहा कोई मानव वंचित,
इस बैर भाव के अंगारों से
काट रहा इन्सां को इन्सां,
धर्म निर्मित तलवारों से।
भाव-विचार अब मानवता का,
नहीं रहा इंसानों में
अपने ही सब भाई बँट गए,
हिन्दू और मुसलमानों में।
सुलग रहा है शहर ये सारा…
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Very true and beautiful